राम रघोबा राणे भारतीय सेना के एक वीर योद्धा थे, जिनकी वीरता और देशभक्ति का किस्सा आज भी प्रेरणादायक है। उनका जन्म 26 जून 1918 को महाराष्ट्र के चोरला गांव में हुआ था।
प्रारंभिक जीवन और सेना में भर्ती
राणे का बचपन साधारण ग्रामीण परिवेश में बीता। छोटी उम्र में ही उन्होंने अपने पिता से देशभक्ति और सेवा का पाठ सीखा। 1940 में उन्होंने भारतीय सेना में भर्ती होकर देश की सेवा का संकल्प लिया।
दूसरे विश्व युद्ध में भूमिका
दूसरे विश्व युद्ध के दौरान, राणे ने बर्मा के मोर्चे पर अदम्य साहस का परिचय दिया। उनकी वीरता और रणनीतिक कौशल के कारण उन्हें कई बार सम्मानित किया गया।
भारत-पाक युद्ध 1947-48
1947-48 के भारत-पाक युद्ध के दौरान, राणे ने एक प्रमुख भूमिका निभाई। जम्मू-कश्मीर के नौशेरा सेक्टर में उनकी टुकड़ी ने दुश्मन की भारी संख्या का मुकाबला किया। इस युद्ध में उनकी वीरता के लिए उन्हें परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया, जो भारतीय सेना का सर्वोच्च वीरता पुरस्कार है।

परमवीर चक्र की कहानी
राम रघोबा राणे ने अपने साथियों के साथ मिलकर दुश्मन के कई बंकर नष्ट किए। उन्होंने अपनी जान की परवाह किए बिना दुश्मन के ठिकानों पर हमला किया और महत्वपूर्ण रणनीतिक स्थलों को वापस जीता। उनके अद्वितीय साहस और नेतृत्व के कारण भारतीय सेना को महत्वपूर्ण सफलता मिली।
सेवा के बाद जीवन
सेना से सेवानिवृत्ति के बाद, राणे ने अपने गांव में एक साधारण जीवन व्यतीत किया। उन्होंने ग्रामीणों को शिक्षित करने और देशभक्ति के गुण सिखाने में अपना समय बिताया।
निष्कर्ष
राम रघोबा राणे का जीवन साहस, त्याग और देशभक्ति का प्रतीक है। उनकी वीरता और समर्पण हमें यह सिखाते हैं कि अपने देश के लिए किसी भी बलिदान से पीछे नहीं हटना चाहिए। उनकी कहानी हर भारतीय के लिए प्रेरणा का स्रोत है।
